ईद पर हुड़दंग के बजाय अल्लाह की इबादत करें
अंशु चौहान
दनकौर । ईद के दिन मुस्लिम समुदाय के लोग आपस मे दुश्मनी भूलकर भी गले लग जाते हैं। दनकौर स्थित मस्जिद के ईमाम चिश्ती ने बताया कि इस्लामिक शरीयत के हिसाब से मुस्लिमों पर पूरे महीने के रोजे रखने फर्ज (जरूरी) हैं। बताया कि पूरे माह रोजे रखने के बाद मुस्लिम समुदाय के लोग हर्सोउल्लास के साथ ईद का त्योहार एक साथ मिलकर मनाते हैं। उन्होंने बताया कि जब पैगम्बर मुहम्मद साहब मक्का से हिजरत (चलकर) करके मदीना पहुँचे तब उनके आने की खुशी में पहली बार ईद का त्योहार मनाया गया था। इस त्योहार को ईद उल फितर इसलिए भी कहा जाता हैं की प्रत्येक मुस्लिम को ईद की नमाज से पहले सदका ए फितर (एक प्रकार का दान) देना जरूरी है जिसमें दो किलो पैंतालीस ग्राम गेंहू या इसकी कीमत को किसी गरीब इंसान को देना जरूरी है। जिससे कि गरीबों के घर में भी खुशी मनाई जा सके। अमीर आदमी या तो गेंहू या खजूर और किसमिस चार किलो ग्राम या उससे अधिक जितना चाहे दान कर सकता है। शरीयत (धर्म) के हिसाब से ईद के दिन या इसके अलावा दिनों में शरीयत (धर्म) खेलकूद और हुड़दंग करने की इजाजत नही देता है। इस दौरान दिनभर घूमने और हुड़दंग करने के बजाय अल्लाह का नाम लेना और जिक्र करना चाहये। ईद का त्योहार आने से पहले मुस्लिम समुदाय के लोगों द्वारा बाजार में जमकर खरीददारी की गई थी। इस दौरान महिलाओं और पुरुषों की भीड़ के कारण बाजारों की रौनक बढ़ गई। वहीं लोगों ने तरह तरह की सेवइयों समेत अन्य उत्पाद खरीदे। मुस्लिम समुदाय का सबसे प्रिय त्योहार ईद का माना जाता है।
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नए कपड़े पहनना क्यों बेहतर है
– ईद के दिन नमाज पढ़ने के लिए नए कपड़े पहनना बेहतर है बताया जाता है कि अगर कोई इंसान इस दिन नए कपड़े नही खरीद सकता है तो वह पाक और साफ सुथरे कपड़े पहनकर नमाज पढ़ सकता है। वहीं गरीब इंसान की मदद करते हुए उसकी हर सम्भव मदद करे। जिससे अल्लाह राजी होता है।
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केवल दो दिन क्यों ईदगाह पर नमाज पढ़ी जाती है
– मस्जिद के अलावा मुस्लिम समुदाय के लोग ईदगाह पर जाकर भी नमाज पढ़ते हैं। यहां पर केवल वर्ष के दो दिन ही नमाज पढ़ी जाती है। इसके अलावा मुस्लिम समुदाय के लोग पूरे वर्ष मस्जिद में ही नमाज पढ़ते हैं।
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